चुनावों का दौर , था भाषणों का शोर नेता सिक्कों से ,कहीं लड्डुओं से तुल रहे थे गले में फूल झूल रहे थे अचानक एक फूल बोला मन का भेद खोला श्रीमान जी मुझे बचाइए ,यहाँ से ले जाईये मेरा मन सच्चा है भ्रष्ट नेता के गले का हार बननें से तो जनता के पावों तले आना अच्छा है . रमेश शर्मा बाहिया