TIRANGA






Monday, November 12, 2012

  दीप मोहब्बत का जलाओ ,तो दिवाली हो
  अँधियारा नफ़रत का मिटाओ ,तो दिवाली हो
              घर के कोनों में कशिश ज़माने की ,
    प्यासी आखियों में नूर लाओ ,तो दिवाली हो .
                                               दीपावली की शुभकामनाये .
                                                                                        रमेश .

Thursday, June 21, 2012

तुम सजने फिर से सवरने लगी ,
खुशियाँ ही खुशियाँ छलकने लगी ,
हम वादों के सफ़र में फिसलते रहे
तुम मोहब्बत की बाँहों में सिमटने लगी ,
                    देख मंजर दिल भर आया मेरा ,
                  खुशहाल रहो प्यार हो अमर तेरा .

Monday, March 19, 2012

pardesi

            परदेसी

मैं जानता हूँ ,वो किस हाल रहता है
प्यार भी हमी से उधार लेता है ,
वहां होता है ,एक दिन वेलेनटाइनडे
यहाँ तो वेलेनटाइन पूरे साल रहता है .

Sunday, February 26, 2012

            यहाँ सामान महंगा और जिंदगी सस्ती है ,
            यहाँ जनता नहीं ,भीड़ बसती है .
     हूँ ,जोऊ
          थारा चाँदी वर्ण बाळ
            हर सोने रो बोरलो 
              के मेल है ....
                     सोने अर चाँदी रो ..........
                    

Saturday, January 28, 2012

सच लिख ,सच की बात कर
झूठ तोहीन है ,सच का साथ कर /
   राह ईमान की चल ,ना मात कर ,
  सफ़र कटेगा ,प्रेम की बात कर/
       पांव जमीन पर रख ,नजर आसमान कर ,
         शिखर छू जाएगा ,छूने का अरमान कर /
राह  नेकी पर चल ,बदी त्याग कर ,
मंजिल मिलेगी यकीनन,'बाहिया' होंसला साथ कर /

Monday, January 16, 2012

धुंधली सुबह .....पुरानी राह से एक आहट सुनाई दी . मैंने पुच्छा....कोन ?.....
................
फिर पुच्छा ...कोन हो भाई ?
तुम्हारा बच्चपन...;. . इतना कहने आया था --मेरी उंगली थामे चलो गे तो सफ़र अच्छा कट जाएगा .वर्ना तो आज की दुनिया में ..बड़ा बनने के चकर में चक्रघिन्नी हो जाओगे ......................

virah विरह

सालों पहले ....एक सर्द रात.....;उसके नयनों से टपक बूँद पलकों पर ठहर गई /.

....;'.मोती ....नहीं ....नहीं, ...,डायामोंड ....चकाचोंध करती रश्मिया ...'.अकस्मात मेरे मुख से निकला .

''उपमाओं से आंसुओं की कीमत कम मत करो .......''....वह बोली ......

बाहर..विरह की वेदना में बिलखते कुत्तों का विलाप सन्नाटे को चीर गया ....

भीतर ..पलक से टपकी बूँद ..उसके गलों पर बिखर समुदर हो गई ........तब पहली बार बूँद को समंदर होते देखा .........................