TIRANGA






Thursday, April 14, 2011

AGRICULTURE ARTICLE


                                                    रमेश शर्मा "बाहिया"
निम्बोली (नीम ) से कृषि रसायन तैयार करने की विधि :;

प्राचीन काल से ही  नीम के  महत्व को स्वीकारा गया है .नीम का वृक्ष ओषधीय गुणों से भरपूर है . जैविक खेती के दौर में नीम उत्पाद कीटनाशको का प्रयोग निरंतर बढ रहा है .बहुराष्ट्रीय कंपनिया निम्बोली में पाए जाने वाले उपयोगी रसायन अजाडीरेक्टिन से कीटनाशक तैयार कर बाजारों में बेच ,खूब मुनाफा कमा रहीं है .जबकि किसान स्वयं निम्बोली से घर पर नीम का तेल ,नीम खाद ,नीम कीटनाशक आदि सस्ते उत्पाद तैयार कर सकता है .
   नीम उत्पाद कीटनाशको का महत्त्व --
  • कीट इन रसायनों की गंध से दूर भागते है .मादा कीट ऐसी जगह अंडे नहीं देती .
  • सुंडिया ऐसी फसल को खाना बंद कर देती हैं ,यदि खा भी लेती है तो  प्रथम अवस्था की सुंडी मर जाती है व आगे की अवस्थाओं की सुंडियों से जब तितली निकलती है, तो वह विकलांग होती है तथा अंडे देने में सक्षम नहीं रहती  .
  • मित्र कीटों पर इन रसायनों का विपरीत असर नहीं पड़ता 
  • पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचता .
  • रसायनों की अपेक्षा सस्ते होतें है 
  • फसलों में वायरस बीमारी रोकने में सहायक
  • कीटों में बढ रही प्रतिरोधकता को कम करते है
  निम्बोली से कीटनाशक तैयार करने की प्रक्रिया  ---
         
                               निम्बोली  एकत्र  करना :---
                                                                 निम्बोली जब पक कर पीली होने लगे तभी इकट्ठा करना सही रहता है .निम्बोली एकत्र करने से पूर्व वृक्ष के निचे की जगह अच्छी तरह साफ कर लेनी चाहिए ताकि निम्बोली ख़राब न हो .प्रतिदिन सुबह या  दो दिन बाद वृक्ष के नीचे पड़ी निम्बोलिओं को सावधानी से  एकत्र कर लें .ख़राब व फफूंद लगी निम्बोलिओं को अलग कर दें 
               वृक्ष से सीधे भी निम्बोली तोड़ी जा सकती है किन्तु इसमें मेहनत आधिक करनी पड़ती है 
                    छिलका हटाना :-:.
                                                   निम्बोली एकत्र कर, इन्हें बड़े बर्तन में डालकर अच्छी तरह रगड़कर धो लें. .इस प्रकार गुठली (बीज) व छिलका अलग हो जायेंगे .छिलके  का उपयोग कम्पोस्ट खाद बनानें में कर सकते हैं . 

                         बीजों को सुखाना :-
                             गुदे से अलग किये बीजों को साफ हवादार एवं छायादार स्थान पर सुखाना चाहिए .बीजों में हानिकारक फफूंद न पनपे, इसलिए जब तक बीज अच्छी तरह सूख न जाये उन्हें समय समय पर हिलाते रहना चाहिए.
               बीज भण्डारण :-
                                पूरी तरह सूखे हुए बीजों को कपडे या बोरी के थैलों में भर कर खुले छायादार स्थान पर रखना चाहिए ताकि हवा मिलती रहे .प्लास्टिक के थेलों में भण्डारण करने से गुणवता में कमी आती है .
       इस प्रकार संग्रहित निम्बोलियों से नीम पाउडर,नीम तेल ,नीम खली तैयार कर सकते है .
         नीम पाउडर(चूर्ण )तैयार करने की :--
                                                                                                            सूखी हुई निम्बोलियों को ओखली में डाल कर मुसल की सहायता से दरदरा कूट लें .बारीक़ करने की आवश्यकता नहीं होती .इस निम्बोली चूरन का कीटनाशक में प्रयोग किया जाता है .
                      प्रयोग  विधि :
                                          आनुसंधानों से ज्ञात हुआ है की नीम का पाँच प्रतिशत चूरन शत्रु कीटों को नियंत्रित करने में कारगर है .इसके लिए पाँच किलो निम्बोली चूरन लेकर उसे दस लीटर पानी में मिलाकर लगभग १५ मिनट तक अच्छी तरह घोल लें .इस घोल को चौबीस (२४)घंटे के लिए रख दे .चौबीस (२४)घंटे बाद या अगले दिन इसे अच्छी तरह फिर हिलाए एवम बारीक़ कपडे से छान लें .इस छने हुए घोल में और पानी मिला कर कुल एक सौ (१००)लीटर घोल बना ले .
             यह पाँच प्रतिशत नीम अर्क का घोल छिडकाव के लिए तैयार है .यह बाज़ार में मिलने वाली नीम युक्त दवाओं से ज्यादा कारगर है .
                  छिडकाव करते समय इस घोल में थोडा सा गुड व एक मि.ली  तरल साबुन  प्रति  लीटर घोल के हिसाब से मिला ले .गुड से घोल पत्तियों पर चिपक जाता है व साबुन से पूरी पत्ती पर फैलने में मदद मिलती है .
                                      छानने के बाद बचे निम्बोली के अवशेष को खेतों में डालने से दीमक का प्रकोप खत्म हो जाता है .इस से भूमि में ओर्गानिक पदार्थों की मात्रा बदती है जिससे भूमि  उपजाऊ बनी रहती है .
                      नीम  का तेल :----
                                               नीम के तेल का भी कीटनासक के रूप में प्रयोग किया जाता है .सूखी निम्बोलियों का तेल कोल्हू की सहायता से निकला जा सकता है .तेल को सीधे ही कीटनाशी के रूप में प्रयोग कर सकते है .तीन लीटर तेल के घोल से एक हेक्टेयर फसल पर छिडकाव कर सकते है .तेल पानी में  नहीं घुलता है ,अत १-२ मिली .तरल साबुन प्रति लीटर घोल के हिसाब से मिलाकर अच्छी तरह हिला ले .छिडकाव के लिए घोल तैयार है .
            तरल साबुन के स्थान पर वाशिंग पाउडर का प्रयोग भी कर सकते है .
                           नीम की खली _  तेल निकालने के बाद बची खली भी बहुत उपयोगी होती है .आठ किवंटल खली प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाने से भूमि गत कीटों से छुटकारा मिलता है तथा भूमि की उर्वराशक्ति बदती है .
                    नीम उत्पादों द्वारा जैविक विधि से कीट नियंत्रण तो किया ही जा सकता है साथ ही साथ पर्यावरण प्रदुषण ,कीटनाशक रसायनों के अत्याधिक प्रयोग तथा कीटों में बढ रही प्रतिरोधकता को भी कम कर सकते है .

                                      

BVP samaroh suratgarh


Nimboli(Neem)se krishi rasayan tyar karne ki vidhi


                                                    रमेश शर्मा "बाहिया"
निम्बोली (नीम ) से कृषि रसायन तैयार करने की विधि :;


प्राचीन काल से ही  नीम के  महत्व को स्वीकारा गया है .नीम का वृक्ष ओषधीय गुणों से भरपूर है . जैविक खेती के दौर में नीम उत्पाद कीटनाशको का प्रयोग निरंतर बढ रहा है .बहुराष्ट्रीय कंपनिया निम्बोली में पाए जाने वाले उपयोगी रसायन अजाडीरेक्टिन से कीटनाशक तैयार कर बाजारों में बेच ,खूब मुनाफा कमा रहीं है .जबकि किसान स्वयं निम्बोली से घर पर नीम का तेल ,नीम खाद ,नीम कीटनाशक आदि सस्ते उत्पाद तैयार कर सकता है .
   नीम उत्पाद कीटनाशको का महत्त्व --
  • कीट इन रसायनों की गंध से दूर भागते है .मादा कीट ऐसी जगह अंडे नहीं देती .
  • सुंडिया ऐसी फसल को खाना बंद कर देती हैं ,यदि खा भी लेती है तो  प्रथम अवस्था की सुंडी मर जाती है व आगे की अवस्थाओं की सुंडियों से जब तितली निकलती है, तो वह विकलांग होती है तथा अंडे देने में सक्षम नहीं रहती  .
  • मित्र कीटों पर इन रसायनों का विपरीत असर नहीं पड़ता 
  • पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचता .
  • रसायनों की अपेक्षा सस्ते होतें है 
  • फसलों में वायरस बीमारी रोकने में सहायक
  • कीटों में बढ रही प्रतिरोधकता को कम करते है
  निम्बोली से कीटनाशक तैयार करने की प्रक्रिया  ---

         
                               निम्बोली  एकत्र  करना :---
                                                                 निम्बोली जब पक कर पीली होने लगे तभी इकट्ठा करना सही रहता है .निम्बोली एकत्र करने से पूर्व वृक्ष के निचे की जगह अच्छी तरह साफ कर लेनी चाहिए ताकि निम्बोली ख़राब न हो .प्रतिदिन सुबह या  दो दिन बाद वृक्ष के नीचे पड़ी निम्बोलिओं को सावधानी से  एकत्र कर लें .ख़राब व फफूंद लगी निम्बोलिओं को अलग कर दें 
               वृक्ष से सीधे भी निम्बोली तोड़ी जा सकती है किन्तु इसमें मेहनत आधिक करनी पड़ती है 
                    छिलका हटाना :-:.
                                                   निम्बोली एकत्र कर, इन्हें बड़े बर्तन में डालकर अच्छी तरह रगड़कर धो लें. .इस प्रकार गुठली (बीज) व छिलका अलग हो जायेंगे .छिलके  का उपयोग कम्पोस्ट खाद बनानें में कर सकते हैं . 

                         बीजों को सुखाना :-



                             गुदे से अलग किये बीजों को साफ हवादार एवं छायादार स्थान पर सुखाना चाहिए .बीजों में हानिकारक फफूंद न पनपे, इसलिए जब तक बीज अच्छी तरह सूख न जाये उन्हें समय समय पर हिलाते रहना चाहिए.
               बीज भण्डारण :-
                                पूरी तरह सूखे हुए बीजों को कपडे या बोरी के थैलों में भर कर खुले छायादार स्थान पर रखना चाहिए ताकि हवा मिलती रहे .प्लास्टिक के थेलों में भण्डारण करने से गुणवता में कमी आती है .
       इस प्रकार संग्रहित निम्बोलियों से नीम पाउडर,नीम तेल ,नीम खली तैयार कर सकते है .
         नीम पाउडर(चूर्ण )तैयार करने की :--
                                                                                                            सूखी हुई निम्बोलियों को ओखली में डाल कर मुसल की सहायता से दरदरा कूट लें .बारीक़ करने की आवश्यकता नहीं होती .इस निम्बोली चूरन का कीटनाशक में प्रयोग किया जाता है .
                      प्रयोग  विधि :
                                          आनुसंधानों से ज्ञात हुआ है की नीम का पाँच प्रतिशत चूरन शत्रु कीटों को नियंत्रित करने में कारगर है .इसके लिए पाँच किलो निम्बोली चूरन लेकर उसे दस लीटर पानी में मिलाकर लगभग १५ मिनट तक अच्छी तरह घोल लें .इस घोल को चौबीस (२४)घंटे के लिए रख दे .चौबीस (२४)घंटे बाद या अगले दिन इसे अच्छी तरह फिर हिलाए एवम बारीक़ कपडे से छान लें .इस छने हुए घोल में और पानी मिला कर कुल एक सौ (१००)लीटर घोल बना ले .
             यह पाँच प्रतिशत नीम अर्क का घोल छिडकाव के लिए तैयार है .यह बाज़ार में मिलने वाली नीम युक्त दवाओं से ज्यादा कारगर है .
                  छिडकाव करते समय इस घोल में थोडा सा गुड व एक मि.ली  तरल साबुन  प्रति  लीटर घोल के हिसाब से मिला ले .गुड से घोल पत्तियों पर चिपक जाता है व साबुन से पूरी पत्ती पर फैलने में मदद मिलती है .
                                      छानने के बाद बचे निम्बोली के अवशेष को खेतों में डालने से दीमक का प्रकोप खत्म हो जाता है .इस से भूमि में ओर्गानिक पदार्थों की मात्रा बदती है जिससे भूमि  उपजाऊ बनी रहती है .
                      नीम  का तेल :----



                                               नीम के तेल का भी कीटनासक के रूप में प्रयोग किया जाता है .सूखी निम्बोलियों का तेल कोल्हू की सहायता से निकला जा सकता है .तेल को सीधे ही कीटनाशी के रूप में प्रयोग कर सकते है .तीन लीटर तेल के घोल से एक हेक्टेयर फसल पर छिडकाव कर सकते है .तेल पानी में  नहीं घुलता है ,अत १-२ मिली .तरल साबुन प्रति लीटर घोल के हिसाब से मिलाकर अच्छी तरह हिला ले .छिडकाव के लिए घोल तैयार है .
            तरल साबुन के स्थान पर वाशिंग पाउडर का प्रयोग भी कर सकते है .
                           नीम की खली _  तेल निकालने के बाद बची खली भी बहुत उपयोगी होती है .आठ किवंटल खली प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाने से भूमि गत कीटों से छुटकारा मिलता है तथा भूमि की उर्वराशक्ति बदती है .
                    नीम उत्पादों द्वारा जैविक विधि से कीट नियंत्रण तो किया ही जा सकता है साथ ही साथ पर्यावरण प्रदुषण ,कीटनाशक रसायनों के अत्याधिक प्रयोग तथा कीटों में बढ रही प्रतिरोधकता को भी कम कर सकते है .