रिश्ते -रमेश शर्मा बाहिया
तुम परिभाषित करते रहे
रिश्तों को
शब्दों में
सन्धि और समास के सहारे
मैंने जीया रिश्तों को
संवेदनाओं के नम हृदय स्थल से
संवेदनाओं में कहाँ होते है
समास
संधियों की भी आवश्यकता नहीं होती
रिश्ते ,रिश्ते होते हैं
ढोने या निभाने के लिए नहीं
जीने के लिए ,सिर्फ जीने के लिए .
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